Karna – Hero or Villain / कर्ण का चरित्र-चित्रण एवं ''कर्ण'' का परिचय।
क्या कर्ण अहंकारी था ?
अगर हम महाभारत के सन्दर्भ में बात करे तो कही भी ऐसा लगता नहीं है कि कर्ण अहंकारी थे,कर्ण शालीन स्वभाव के थे, वे दानवीर थे उन्हें अपनी शक्ति पर पूर्ण विश्वास था इसका यह मतलब नहीं कि वह अहंकारी थे, उन्होंने कभी भी युद्ध में छल का सहारा नहीं लिया, उन्होंने अपना मित्र धर्म निभाया, आखिर साथ भी तो उनका दुर्योधन ने ही दिया था, इस हालात में आप रहते तो क्या करते सच्चा मित्र तो वही जो अपने मित्र का अंतिम छण तक साथ दे इसीलिए इसमें कारण का क्या दोष, उन्होंने कभी किसी निहथे पे तो वार नहीं किया वह तो हमेशा चाहते थे की युद्ध नैतिकता से लडी जाये। कारण के पास तो न जाने कितनी ही बार ऐसा मौका आया की वो अर्जुन का वध कर सकते थे लेकिन उन्होंने
इसे क्षत्रिय धर्म के विरुद्ध करार दे दिया।
सूर्य पुत्र कर्ण अपने रथ का पहियाँ निकालते हुए। |
छल का सहारा न लेना।
उन्होंने युद्ध में कभी भी छल का सहारा नहीं लिया। ये बात कुछ और थी की अर्जुन ने भगवान् कृष्ण की सलाह मानते हुए कर्ण पे वार किया। वो हम नहीं जानते की न्याय संगत था की नहीं।
कारण को अपने मौत का कारण पता था फिर भी उन्होंने सूर्य देव के समझने पर भी इंद्रा को कवच और कुण्डल दान कर दिया। साश्त्रो की माने तो दान करने वाले को पुण्य मिलता है लेकिन कारण को क्या मिला ?
जिसकी माँ भी उसे अपना न सकी हो , तो वो क्या करता अपने उस मित्र का साथ न देता जिसने उसे अपने पास रखा। जरा सोचिए ?
माँ से किया वादा अंत तक निभाया।
उन्होंने अपनी नैतिकता मृत्यु होने के अंत तक निभाई उन्होंने अपनी मां को यह वचन दिया था की व अर्जुन को छोड़कर किसी अपने किसी भी भाई पर वॉर नहीं करेंगे,उन्होंने वह वचन भी निभाया उन्होंने भगवान परशुराम की सेवा भी की, लेकिन वो भी उनके ही खिलाफ गया।दानवीर कर्ण
उन्होंने एक साहसी एवं वीर योद्धा का धर्म निभाया, उन्होंने अपने जीवन में कभी किसी को खाली हाथ नहीं लौटाया चाहे उन्हें उसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पड़े और कर्ण ने वो कीमत चुकाया भी देवराज इंद्र को अपने कवच- कुण्डल दान करके। उनके इसी वीरता और दान के महत्व को देखते हुए उनका नाम दान वीर भी पड़ा।
इन उपरोक्त तथ्यों के सहारे हम इतना कह ही सकते है की कारण महापुरुष थे न की अहंकारी।
दानवीर कर्ण का वध। |
मरते दम तक दोस्ती निभाना
कहते है कृष्ण और सुदामा की दोस्ती बहुत ही गहरी थी , लेकिन इसकी मिसाल तो कर्ण ने भी पेश की। उन्होंने दुनिया को ये सिख दी की दोस्त वही जो मुसीबत में साथ दे। भले ही दुश्मन के साथ भगवान ही क्यों न हो।
जरुरी निर्देश :- इस लेख में कुछ भी त्रुटि हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी है।
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