बाढ़ की विनाशलीला , और सरकार का उदासीन रवैया। बाढ़ एक ऐसी विभीषिका है जो हर साल लाखो लोगो के लिए एक जंग का हालात पैदा कर देती है एक ऐसी जंग जिसमे सिर्फ आप ही हारते हो कुदरत नहीं , न जाने कितने बेघर हो जाते है और न जाने कितने लापता हो जाते है , ऐसा मंजर होता की हम और आप कल्पना तक नहीं कर सकते। ये एक ऐसा हालात है की जिसमे हमे खुद ही लड़ना भी पड़ता है और जीतना भी। लड़ाई खुद को बचाने के लिए, अपने परिवार को बचने के लिए अपने डूबता हुए घर को बचाने के लिए , यह एक ऐसी जंग है जिसमे न तो हथियार काम आएगा न ही आपका ज्ञान यह बस आपको अपने मौत को करीब से देखने का एक ऐसा मौका देती है जो की आप कभी नहीं चाहेंगे। आखिर हर साल वही हालात आखिर ये हालात हम और आप कब तक देखेंगे। क्या कुछ नहीं किया जा सकता क्या पूरा नहीं तो थोड़ा बहुत भी ऐसे हालात कम नहीं किये जा सकते ? लड़ना तो खुद ही पड़ेगा कब तक हम सरकारों के भरोसे बैठेंगे। सरकार वैसे भी बहुत काम करती है , सरकार के पास इतना पैसा नहीं होता कि व
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