भगवान् शिव कौन हैं ?, भगवान् शिव का स्वरुप कैसा है ? / Bhagwaan Shiv kaun hai ? Bhagwaan Shiv Ka Swaroop Kaisa hai?
शिव की पूजा का महत्व, शिव कौन है ?, भगवान् शिव को शम्भू क्यों कहा जाता है ?
भगवान् शिव जब किसी जीव का संहार करते हैं, तो वह महाकाल बन जाते हैं, यही शिव महामृत्युंजय बनकर उस प्राणी का रक्षा भी करते हैं, तो शंकर बनकर जीव का भरण-पोषण भी करते हैं, रूद्र बनकर महाविनाश लीला भी करते हैं, तो आशुतोष बनकर हर किसी की मनोरथ पूरी करते है और तो और नीलकंठ बन कर विष पी जाते है ताकि सृष्टि बचीं रह, स्वयं शिव ही ब्रह्मा और विष्णु के रूप में एक हो कर देवो के देव महादेव बन जाते हैं।
भगवान् शिव जब किसी जीव का संहार करते हैं, तो वह महाकाल बन जाते हैं, यही शिव महामृत्युंजय बनकर उस प्राणी का रक्षा भी करते हैं, तो शंकर बनकर जीव का भरण-पोषण भी करते हैं, रूद्र बनकर महाविनाश लीला भी करते हैं, तो आशुतोष बनकर हर किसी की मनोरथ पूरी करते है और तो और नीलकंठ बन कर विष पी जाते है ताकि सृष्टि बचीं रह, स्वयं शिव ही ब्रह्मा और विष्णु के रूप में एक हो कर देवो के देव महादेव बन जाते हैं।
भगवान शिव को शम्भू क्यों कहा जाता है ?
भगवान शिव को शंभू इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह स्वयं-भू है अर्थात उनके जन्म का कोई प्रमाण ही नहीं है वे तो निर्जन्म है.
भगवान शिव की उत्पत्ति कैसे हुई ?
भगवान शिव अनंत अविनाशी है, जिनका ना तो कोई आरंभ है और ना ही कोई अंत है, भगवान् शिव वह हैं जो काल के बंधन से मुक्त हैं ,जन्म और मृत्यु उनसे है ,आप खुद ही सोचिए जो खुद ही सृष्टि के संहारक हैं,भला उनका जन्म और मृत्यु कैसे हो सकता है जिनके द्वारा यह सारी सृष्टि बनाई गई हैं, उनकी उत्पत्ति कैसे हो सकती है वह तो निर् जन्म है.
भगवान् शिव के इस स्वरुप को आप शिव रुद्राष्टकम के माध्यम से जान सकते हैं , जो की गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित है ,रुद्राष्टकम के केवल ये दो श्लोक भगवान् शिव के रूप, सौन्दर्य, एवं बल को बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करते हैं :-
१.
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम्॥
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम्॥
भाव अर्थ :-
हे मोक्षस्वरुप विभु, व्यापक, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशाके ईश्वर तथा सबके स्वामी श्री शिवजी, मैं आपको नमस्कार करता हूँ।
निजस्वरुप में स्थित (अर्थात मायादिरहित), गुणों से रहित, भेद रहित, इच्छा रहित चेतन आकाशरूप एवं आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दीगम्बर (अथवा आकाश को भी आच्छादित करने वाले), आपको में भजता हूँ ॥१॥
निजस्वरुप में स्थित (अर्थात मायादिरहित), गुणों से रहित, भेद रहित, इच्छा रहित चेतन आकाशरूप एवं आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दीगम्बर (अथवा आकाश को भी आच्छादित करने वाले), आपको में भजता हूँ ॥१॥
२.
निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकालकालं कृपालं
गुणागारसंसारपारं नतोहम्॥
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकालकालं कृपालं
गुणागारसंसारपारं नतोहम्॥
भावार्थ:
निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत), वाणी ज्ञान और इन्द्रियों से पर, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के काल कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ ॥२॥
निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत), वाणी ज्ञान और इन्द्रियों से पर, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के काल कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ ॥२॥
आवश्यक सुचना :- इस पोस्ट के सम्बन्ध में अगर कोई त्रुटि पाई जाती तो हम इसके लिए क्षमा प्रार्थी है।
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