बाढ़ की विनाशलीला , और सरकार का उदासीन रवैया।
बाढ़
एक ऐसी विभीषिका है
जो हर साल लाखो
लोगो के लिए एक
जंग का हालात पैदा
कर देती है एक
ऐसी जंग जिसमे सिर्फ
आप ही हारते हो
कुदरत नहीं , न जाने कितने
बेघर हो जाते है
और न जाने कितने लापता हो जाते है,
ऐसा मंजर होता की
हम और आप कल्पना तक नहीं कर सकते।
ये एक ऐसा हालात
है की जिसमे हमे खुद ही लड़ना भी पड़ता
है और जीतना भी। लड़ाई खुद को बचाने के लिए, अपने परिवार को बचने के लिए अपने डूबता हुए घर को बचाने के लिए , यह एक ऐसी जंग है जिसमे न तो हथियार काम आएगा न ही आपका ज्ञान यह बस आपको अपने मौत को करीब से देखने का एक ऐसा मौका देती है जो की आप कभी नहीं चाहेंगे। आखिर हर साल वही हालात आखिर ये हालात हम और आप कब तक देखेंगे। क्या कुछ नहीं किया जा सकता क्या पूरा नहीं तो थोड़ा बहुत भी ऐसे हालात कम नहीं किये जा सकते ?
लड़ना
तो खुद ही पड़ेगा
कब तक हम सरकारों
के भरोसे बैठेंगे। सरकार वैसे भी बहुत
काम करती है , सरकार
के पास इतना पैसा
नहीं होता कि वो हमारी मदद
कर सके , हम क्या सोचते है, अगर हम बाढ़
के बीच फंसे हो,
तो
क्या सरकार हमारे लिए हेलीकॉप्टर भेज
दे? नहीं भाई इस परेशानी से हमे ही निपटना होगा सरकार क्या करेगी? सरकार जो करेगी वो तो बाद में करेगी अगर हम जैसे-तैसे बाढ़ से बच भी गए तो आगे क्या होगा सरकार कुछ मुआवज़ा दे देगी। अगले साल फिर वही तो दोहराना है हमे। जहा बाढ़ मुक्त भारत कहना चाइये वह शौच मुक्त भारत का नारा दिया जाता है अब इन्हे कोन समझाए की जब आदमी का पूरा मकान ही बह जायेगा तो फिर वो शौच मुक्त क्या शौचालय मुक्त ही हो जाएगा?
नहीं ऐसा नहीं हो सकता ये तो तुम्हे जरूर सोचना होगा क्यूंकि कल ये हालात हमारे साथ भी तो हो सकता है
नहीं ऐसा नहीं हो सकता ये तो तुम्हे जरूर सोचना होगा क्यूंकि कल ये हालात हमारे साथ भी तो हो सकता है
मिथिला के नरुआर गाँव में बाढ़ |
अब सवाल ये उठता है कि हम जो इतना टैक्स देते है क्या उसमे से इतना पैसा भी नहीं बचता की हर बाढ़ पीड़ित जिले में एक हेलीकाप्टर भी मुहैया करा सके। सरकार सड़क बनाने के नाम पर हज़ारो पेड़ कटवा सकती है, तो क्या बाढ़ के नाम पर हज़ारो पेड़ लगवा नहीं सकती है क्या ? सरकार को ये जरूर सोचने होगा, सिर्फ छोटा सा मुआवज़ा देकर इसकी भरपाई नहीं की जा सकती है
जरा
सोचिये जब जनता ही
नहीं बचेगी तो ये टैक्स
का पैसा खर्च ही
किसपे होगा , क्या हमे शौच
-मुक्त भारत से पहले
बाढ़ मुक्त भारत के बारे
में नहीं सोचना चाहिए ?
अब आपको मेरी बाते अजीब सी लग रही होगी , लेकिन आप खुद सोचिए अगर जब बाढ़ में घर ही नहीं बचेगा तो क्या शौचालय बचेगा। एक व्यक्ति अपने जीवन में कितना बार घर बना सकता है,खासकर ऐसी बढ़ वाली जगहों पर , अब आप ही कल्पना कीजिए जिस आदमी का जमा पूंजी बह जाये बढ़ मे क्या वो दुबारा वैसा मकान बना पायेगा की क्या वो पहले सोच मुक्त भारत का सोचेगा या फिर बाढ़ मुक्त भारत के बारे में सोचेगा?
मिथिला के नरुआर गाँव में क्षतिग्रस्त मकान भीषण बाढ़ के द्वारा। |
अब आपको मेरी बाते अजीब सी लग रही होगी , लेकिन आप खुद सोचिए अगर जब बाढ़ में घर ही नहीं बचेगा तो क्या शौचालय बचेगा। एक व्यक्ति अपने जीवन में कितना बार घर बना सकता है,खासकर ऐसी बढ़ वाली जगहों पर , अब आप ही कल्पना कीजिए जिस आदमी का जमा पूंजी बह जाये बढ़ मे क्या वो दुबारा वैसा मकान बना पायेगा की क्या वो पहले सोच मुक्त भारत का सोचेगा या फिर बाढ़ मुक्त भारत के बारे में सोचेगा?
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